डॉ. महेंद्र महरा ‘मधु’ ने गीता का किया उर्दू में अनुवाद

श्रीमद्भगतद गीता का उर्दू तरजुमा पुस्तक। - फोटो : jaisreeram news
इंटर कॉलेज चितई के हिंदी प्रवक्ता और साहित्यकार डॉ. महेंद्र महरा ‘मधु’ ने धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवद गीता का उर्दू लिपि (श्रीमद्भगवद गीता का उर्दू तरजुमा) में अनुवाद किया है। गीता के 700 श्लोकों का उन्होंने उर्दू में अर्थ लिखा है। उर्दू अनुवाद की तीन सौ पृष्ठों की उन्होंने हस्तलिखित पुस्तक तैयार की है।श्रीमद्भगवद गीता का उर्दू तरजुमा पुस्तक के प्रारंभ में डॉ. मधु ने गीता के 18 अध्यायों का सारांश लिखा है। उर्दू तरजुमा में उन्होंने गीता के प्रत्येक संस्कृत श्लोक के बाद उसका उर्दू में अर्थ लिखा है, ताकि समझने में आसानी हो। डॉ. मधु को भगवद गीता का उर्दू में अनुवाद करने में करीब डेढ़ साल का समय लगा। डॉ. मधु कहते हैं कि श्रीमद् भगवद गीता विश्व शांति और मानवता का संदेश देती है। भगवद गीता के संदेशों का अनुसरण करके की विश्व में शांति स्थापित हो सकती है। भगवान श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र में अर्जुन को जो संदेश देते हैं वह सनातन धर्म का मूल भाव है।डॉ. मधु बताते हैं कि इससे पूर्व अनवर जलालपुरी द्वारा श्रीमद् गीता को शायरी के रूप में लिखा गया था। डॉ. मधु का कहना है कि श्रीमद् भगवद गीता को गीता की मूल भावना के साथ पढ़ने पर ही उसका आध्यात्मिक सुख प्राप्त किया जा सकता है।
उर्दू विषय में कामिल और अरबी भाषा में भी किया है डिप्लोमा
अल्मोड़ा। पूर्वी पोखरखाली निवासी डॉ. महेंद्र महरा ‘मधु’ ने संस्कृत विषय से पीएचडी की है। उर्दू विषय में कामिल और अरबी भाषा में डिप्लोमा किया है। उन्होंने स्वाध्याय से उर्दू भाषा सीखी और कलाम पाक कुरान शरीफ को भी पढ़ा। गीता से लगाव के चलते डॉ. मधु ने अपने पैतृक गांव कौसानी में श्रीमद्भगवद गीता मंदिर भी बनाया है। वहां आने वाले सैलानियों को वह गीता निशुल्क भेंट करते हैं। डॉ. महरा की इससे पहले भौजी कहानी संग्रह, मुंह बंद करने की क्लास, लघु नाटिका यहां, मैं पहाड़ (कविता संग्रह), रूद्र चंद्र का संस्कृत साहित्य को योगदान पुस्तकें, कुमाउंनी भाषा का पहला गजल संग्रह मनैकि बात मनै में रै प्रकाशित हो चुके हैं।
उर्दू विषय में कामिल और अरबी भाषा में भी किया है डिप्लोमा
अल्मोड़ा। पूर्वी पोखरखाली निवासी डॉ. महेंद्र महरा ‘मधु’ ने संस्कृत विषय से पीएचडी की है। उर्दू विषय में कामिल और अरबी भाषा में डिप्लोमा किया है। उन्होंने स्वाध्याय से उर्दू भाषा सीखी और कलाम पाक कुरान शरीफ को भी पढ़ा। गीता से लगाव के चलते डॉ. मधु ने अपने पैतृक गांव कौसानी में श्रीमद्भगवद गीता मंदिर भी बनाया है। वहां आने वाले सैलानियों को वह गीता निशुल्क भेंट करते हैं। डॉ. महरा की इससे पहले भौजी कहानी संग्रह, मुंह बंद करने की क्लास, लघु नाटिका यहां, मैं पहाड़ (कविता संग्रह), रूद्र चंद्र का संस्कृत साहित्य को योगदान पुस्तकें, कुमाउंनी भाषा का पहला गजल संग्रह मनैकि बात मनै में रै प्रकाशित हो चुके हैं।
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